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Thursday 21 September 2017

STAMMERING

Learning to talk, like learning to walk,is never completely smooth and does not happen right away. Small children often stop,pause,start again and stumble over words when they are learning to talk.
Between the ages of two and five years,it is natural for a child to repeat words and phrases, and hesitate with 'um' s and 'er' s,when he is deciding what to say ,next.
Stammering is the inability of a person to speak typical, fluent manner. Every individual has a different fluency pattern.Also,not everyone is totally fluent all the times. 
Identification of 'stammering '
1. Is putting extra effort while mouthing words
2. Has tense and jerky speech
3.cannot seem to get started,no sound comes out for several seconds
4.In stretching sound in a word " I want a ssstory" also say " mu- mu- mu"
Some of the common causative factors may be:
1.Change in familiar home or school environment
2. Birth of a sibling
3. Absence of one or both parents temporarily or for some length of time
4. It is about four times more common in boys than in girls.
5. Stress situations
6. Faulty coordination
7. Slower rate of language development
STRATEGIES
1. Remain observant
2. Be supportive
3. Do not say " stop and start over " listen patiently and carefully to what the child is saying.
4. Say something encouraging
5. Spend time together
6. Healthy diet
7. Try to avoid a hectic and rushed lifestyle.
8. Watch physical language

We gives you some salutation. But it's not  solve stammering problems. Mostly your attention and caring solve the all problems.

Saturday 16 September 2017

बच्चों के पालन और परवरिश में अन्तर

बच्चों का प्राथमिक समय अति महत्वपूर्ण होता है।जिसमें बच्चों का आधार तय होता है । जिस छड़ बच्चा पैदा होता है उस समय से लेकर छः ,सात वर्ष तक अति महत्वपूर्ण होते हैं। हमारे खुद के विचार से दुनिया में सबसे कठिन कार्य एक बच्चे की परवरिश है । बच्चों के पालन और परवरिश में अन्तर है। बच्चों की अपनी ही एक कल्पना से भरी दुनिया होती है जिसे वह अपनी चेतना के अनुसार देखते हैं ।
पर हम उन बालकों पर अपनी भावनाये थोपने लगते हैं, बचपन से ही छोटी छोटी बातों से ही वो बातें शायद महत्वहीन हो पर फिर भी हम बालकों पर एक अजीब सा नियन्त्रण करने लगते हैं । चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक । उसको अत्यधिक सुविधा देना भी उसके लिए बाधा है और अत्यधिक असुविधा भी बाधा । जिस प्रकार वीणा कि तार
अत्यधिक ढीली हो या कसी हो तो सुर नहीं निकलते उसी प्रकार बालक कि स्थिती भी मध्य
मे हो । उसके जीवन में संघर्ष भी और सुरक्षा भी ।
बच्चो के कोई विचार नहीं होते, वह क्या सोच सकता है? विचारों के लिए अतीत का होना आवश्यक है ,समस्या का होना आवश्यक उसका तो कोई अतीत नहीं केवल भविष्य है।
अभी उसको कोई समस्या भी नहीं। बच्चो के पास केवल चेतना है विचार नहीं।
1. यही बच्चे का वास्तविक चेहरा है, बच्चे सब तरह के सम्मान के हकदार है उनका आदर करो।
2. कभी तुलना मत करें, क्योकि यह एक गम्भीर रोग है।
3. बच्चे प्रमाणित होते हैं। जब वह क्रोधित होते हैं तो वह सच में क्रोधित होते हैं ,उनके क्रोध में भी सौन्दर्य होता है,अगले क्षण वह फिर प्रसन्न है अब उसकी प्रसन्नता भी सत्य है।
4. सबसे महत्वपूर्ण बालक कि शिक्षा प्रेम केन्द्रित हो , उन्हे स्वतन्त्रता दो । उन्हे भूल करने
दो, भूलों को समझने में उनका सहयोग करो।  उन्हे बताओ गलती करना गलत नहीं,  बस हो सके तो दोहराओ मत क्योकि यह मूर्खता है। आप को बच्चो पर निरन्तर इस पर कार्य करना होगा। उन्हे छोटी छोटी चीज़ों में स्वतन्त्रता देनी होगी।  उन्हे रोकना नहीं सिर्फ सावधानी रखनी है।
5. "हाँ " कहना सिखाओ "न" नहीं।  क्योकि न नकारात्मक है। हम बच्चो को छोटी छोटी बातों में न कह कर हम उनकी स्वतन्त्रता छीनते है। बच्चे कोई वस्तु नहीं है।

Wednesday 6 September 2017

बच्चों का दिन में सोना उनके सामाजिक और भावनात्मक विकास में भी सहायक है

बच्चों को दिन में सपने आते है! सपने तो नहीं में ही आते हैं। यानी नींद का संबंध सपने से हैं। यह बात जेहन में एक कौतूहल पैदा करती है। लेकिन जानकारों और थैरेपिस्ट्स के मुताबिक दिन में सपनों का आना बच्चों के विकास में अहम भूमिका निभाता है। इस तथ्य को लेकर दुनिया भर में रिसर्च हुए जिसमें बच्चों की क्रिएटिविटी , सामाजिक संतुलन , भाषा के विकास और स्कूलों में बच्चों के प्रदर्शन की बात सामने आई। लेकिन सपने तो तभी आएंगे जब बच्चे सोएंगे। सोना बच्चों को सामाजिक, इंटरएक्टिव बनाने के साथ उनके हर पहलुओं का विकास करता है।
जल्दी करें। आप तैयार होने के लिए इतना वक्त क्यों ले रहे है? यह बात समझने की जरूरत है कि दिन में सपना किसी बच्चे के सोच, विचार को बहाव में बहने की आजादी देता है। प्यारे अभिभावकों आपको इसके लिए किसी प्रकार की भी चिंता करने की जरूरत नहीं है। उन्हें स्कूल के लिए तैयार करने के अलावा उन्हें स्पेस दे ताकि आपके बच्चे दिन में सपने देख सकें। इस बात पर भी गौर करे कि ऐसा दुनिया के नामचीन वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन और न्यूटन के साथ भी होता था। वह भी दिन में बचपन की अवस्था में सोया करते थे और सपने देखा करते थे। इस प्रकार आपके घर में ही जीनियस/साइंटिस्ट मौजूद है।
यहां कुछ बातें दिन में सपने देखने वाले बच्चों के लिए बताई जा रही है जिससे उनका ब्रेन ज्यादा प्रखर होगा और विकास भी बेहतर होगा। डे-ड्रीमिंग (दिन में सोना और सपने देखना) और सुस्त होना एक अवस्था नहीं है। इसमें बहुत अंतर है। क्लास में टास्क के दौरान बच्चों का सो जाना एक सामान्य प्रक्रिया है। यह अवस्था तब होती है जब बच्चे बोर हो जाते और उकता जाते है। यही कारण है कि बच्चे क्लास में नींद लेते है। कोई भी बच्चा क्लास रूम के वातावरण से उकताकर खुद के लिए स्पेस ढूंढता है और इसी क्रम में उसे नींद आ जाती है।
बच्चों का दिन में सोना उनके सामाजिक और भावनात्मक विकास में भी सहायक है - हमलोग ज्यादातर अभिभावकों  से यही सुनते हैं बच्चा शर्मिला है। दरअसल यह बच्चों को खुद को अभिव्यक्त करना सिखाता है। दिन में सोना बच्चों को सामाजिक सांचे में ढालने के साथ उन्हें तमाम बदलाव से भी अवगत कराता है ताकि वह खुद को हर माहौल में ढाल सके। ज्यादातर बच्चों का डे-ड्रीमिंग कुछ खास होता है। यह बच्चों के मानसिक विकास में बेहद सहायक होता है और मानसिक तौर पर उन्हें मजबूत बनाता है। कुछ बच्चे नींद में यह भी सपने देखते है कि उन्होंने किसी मैच को जीत लिया हो और लोगों के सामने वह परफॉर्म कर रहे हैं।
डे-ड्रीमिंग बच्चों की क्रिएटिविटी बढ़ाता है - इससे बच्चों की काल्पनिक शक्ति बढ़ती है जिसका प्रभाव उनके लेखन और उनके प्रोजेक्ट्स में देखने को मिलता है। लेकिन हम ऐसा समझते है कि बच्चों का दिन में सोना सिर्फ समय की बर्बादी है जबकि ऐसा नहीं है। हम बच्चों को चूहा-बिल्ली के रेस में शामिल करना चाहते है लेकिन ऐसा करके हम उनकी क्रियात्मकता और आजादी को छीन लेते है। इसलिए हमें डे-ड्रीमिंग के महत्व को समझना होगा।
डे-ड्रीमिंग से बच्चों की कल्पना क्षमता बढ़ती है -  काल्पनिक शक्ति से इनोवेशन और खोज की राह बनती है। इसलिए बच्चों को आप उनके मुताबिक खिलने दे। बारिश होगी तो बादल नहीं होगे। लेकिन सिर्फ बादलों का होना और बारिश का नहीं होना किसी भी सूरते हाल में ठीक नहीं है।



क्या आप के बच्चे रात में देर तक जागते हैं?

 आज कल टीनएजर्स का देर रात तक मोबाइल चलाना ,लैपटॉप पर लगे रहना, घंटों टीवी पर प्रोग्राम देखना या फिर दोस्‍तों के साथ मोबाइल पर बातें करना इन...