बच्चों का प्राथमिक समय अति महत्वपूर्ण होता है।जिसमें बच्चों का आधार तय होता है । जिस छड़ बच्चा पैदा होता है उस समय से लेकर छः ,सात वर्ष तक अति महत्वपूर्ण होते हैं। हमारे खुद के विचार से दुनिया में सबसे कठिन कार्य एक बच्चे की परवरिश है । बच्चों के पालन और परवरिश में अन्तर है। बच्चों की अपनी ही एक कल्पना से भरी दुनिया होती है जिसे वह अपनी चेतना के अनुसार देखते हैं ।
पर हम उन बालकों पर अपनी भावनाये थोपने लगते हैं, बचपन से ही छोटी छोटी बातों से ही वो बातें शायद महत्वहीन हो पर फिर भी हम बालकों पर एक अजीब सा नियन्त्रण करने लगते हैं । चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक । उसको अत्यधिक सुविधा देना भी उसके लिए बाधा है और अत्यधिक असुविधा भी बाधा । जिस प्रकार वीणा कि तार
अत्यधिक ढीली हो या कसी हो तो सुर नहीं निकलते उसी प्रकार बालक कि स्थिती भी मध्य
मे हो । उसके जीवन में संघर्ष भी और सुरक्षा भी ।
बच्चो के कोई विचार नहीं होते, वह क्या सोच सकता है? विचारों के लिए अतीत का होना आवश्यक है ,समस्या का होना आवश्यक उसका तो कोई अतीत नहीं केवल भविष्य है।
अभी उसको कोई समस्या भी नहीं। बच्चो के पास केवल चेतना है विचार नहीं।
1. यही बच्चे का वास्तविक चेहरा है, बच्चे सब तरह के सम्मान के हकदार है उनका आदर करो।
2. कभी तुलना मत करें, क्योकि यह एक गम्भीर रोग है।
3. बच्चे प्रमाणित होते हैं। जब वह क्रोधित होते हैं तो वह सच में क्रोधित होते हैं ,उनके क्रोध में भी सौन्दर्य होता है,अगले क्षण वह फिर प्रसन्न है अब उसकी प्रसन्नता भी सत्य है।
4. सबसे महत्वपूर्ण बालक कि शिक्षा प्रेम केन्द्रित हो , उन्हे स्वतन्त्रता दो । उन्हे भूल करने
दो, भूलों को समझने में उनका सहयोग करो। उन्हे बताओ गलती करना गलत नहीं, बस हो सके तो दोहराओ मत क्योकि यह मूर्खता है। आप को बच्चो पर निरन्तर इस पर कार्य करना होगा। उन्हे छोटी छोटी चीज़ों में स्वतन्त्रता देनी होगी। उन्हे रोकना नहीं सिर्फ सावधानी रखनी है।
5. "हाँ " कहना सिखाओ "न" नहीं। क्योकि न नकारात्मक है। हम बच्चो को छोटी छोटी बातों में न कह कर हम उनकी स्वतन्त्रता छीनते है। बच्चे कोई वस्तु नहीं है।
पर हम उन बालकों पर अपनी भावनाये थोपने लगते हैं, बचपन से ही छोटी छोटी बातों से ही वो बातें शायद महत्वहीन हो पर फिर भी हम बालकों पर एक अजीब सा नियन्त्रण करने लगते हैं । चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक । उसको अत्यधिक सुविधा देना भी उसके लिए बाधा है और अत्यधिक असुविधा भी बाधा । जिस प्रकार वीणा कि तार
अत्यधिक ढीली हो या कसी हो तो सुर नहीं निकलते उसी प्रकार बालक कि स्थिती भी मध्य
मे हो । उसके जीवन में संघर्ष भी और सुरक्षा भी ।
बच्चो के कोई विचार नहीं होते, वह क्या सोच सकता है? विचारों के लिए अतीत का होना आवश्यक है ,समस्या का होना आवश्यक उसका तो कोई अतीत नहीं केवल भविष्य है।
अभी उसको कोई समस्या भी नहीं। बच्चो के पास केवल चेतना है विचार नहीं।
1. यही बच्चे का वास्तविक चेहरा है, बच्चे सब तरह के सम्मान के हकदार है उनका आदर करो।
2. कभी तुलना मत करें, क्योकि यह एक गम्भीर रोग है।
3. बच्चे प्रमाणित होते हैं। जब वह क्रोधित होते हैं तो वह सच में क्रोधित होते हैं ,उनके क्रोध में भी सौन्दर्य होता है,अगले क्षण वह फिर प्रसन्न है अब उसकी प्रसन्नता भी सत्य है।
4. सबसे महत्वपूर्ण बालक कि शिक्षा प्रेम केन्द्रित हो , उन्हे स्वतन्त्रता दो । उन्हे भूल करने
दो, भूलों को समझने में उनका सहयोग करो। उन्हे बताओ गलती करना गलत नहीं, बस हो सके तो दोहराओ मत क्योकि यह मूर्खता है। आप को बच्चो पर निरन्तर इस पर कार्य करना होगा। उन्हे छोटी छोटी चीज़ों में स्वतन्त्रता देनी होगी। उन्हे रोकना नहीं सिर्फ सावधानी रखनी है।
5. "हाँ " कहना सिखाओ "न" नहीं। क्योकि न नकारात्मक है। हम बच्चो को छोटी छोटी बातों में न कह कर हम उनकी स्वतन्त्रता छीनते है। बच्चे कोई वस्तु नहीं है।
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